आमतौर पर भारत में ज्यादा ठंड पड़ने पर स्कूल एक-एक महीने के लिए बंद हो जाते हैं। लेकिन रूस के ओएमयाकोन शहर में माइनस 51 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी स्कूल खुल रहा है। और तो और हडि्डयां कंपा देने वाली इस ठंड के बावजूद छोटे-छोटे बच्चे क्लास में पहुंच रहे हैं। यह स्कूल 11 साल या उससे कम उम्र के छात्रों के लिए तभी बंद होता है, जब तापमान -52 डिग्री या उससे कम चला जाता है।
यह सरकारी स्कूल 83 साल पुराना है, जो साइबेरिया के गांव में स्थित है। इस स्कूल को 1932 में स्टालिन के राज में बनवाया गया था। यहां खारा तुमूल और बेरेग युर्डे गांव के बच्चे पढ़ने आते हैं। ओएमयाकोन की आबादी करीब 2500 है। यहां पोस्ट ऑफिस और बैंक जैसी कुछ बहुत बुनियादी सुविधाएं मौजूद हैं। इस बेहद दुर्गम और चुनौतीपूर्ण जगह पर भी कोरोना वायरस का खतरा बना हुआ है।
किसी की तबीयत खराब होने पर टेस्ट कराया जाता है
महामारी के बावजूद भी यहां स्कूल खुल रहा है। हालांकि, संक्रमण के बचाव के लिए बच्चों के साथ पैरेंट्स और स्टाफ को भी स्कूल में घुसने से पहले तापमान चेक कराना होता है। किसी भी छात्र या स्टाफ की तबीयत खराब होने पर तत्काल उसका कोविड टेस्ट कराया जाता है।
'फोटोग्राफी के वक्त अंगुलियां पूरी तरह जम जाती है'
यहां के लोकल फोटोग्राफर सेम्योन बताते हैं- ‘8 दिसंबर को यहां फोटो शूट कर रहा था। तब यहां का तापमान -50 डिग्री था। काम के दौरान मैंने ग्लव्स पहने थे। अगर उन्हें नहीं पहनता तो मेरी अंगुलियां पूरी तरह से जम जाती और मुझे फ्रॉस्टबाइटिंग की समस्या हो सकती थी, जो अत्यधिक ठंड के चलते अंगुलियों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है।
इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां के बच्चे कितनी चुनौतियों का सामना करते हुए स्कूल जाते हैं। वे कभी-कभी अपने पैरेंट्स के साथ होते हैं तो कभी-कभी वे अपने डॉग्स के साथ। -50 डिग्री तापमान पर हाइपोथर्मिया होने का खतरा भी काफी बढ़ जाता है। हाइपोथर्मिया एक मेडिकल इमरजेंसी है, जिसमें शरीर का तापमान बहुत तेजी से गिरने लगता है।
इससे हाई ब्लडप्रेशर, दिल की धड़कन का तेज होना और कुछ केसों में मौत भी हो सकती है। इस तापमान पर डॉक्टर्स लंबी-गहरी सांस लेने के लिए भी मना करते हैं, क्योंकि इस तापमान पर सिर्फ सांस लेना भी तकलीफदेह हो सकता है। ठंडी हवा फेफड़ों में भर जाने का खतरा भी होता है, जो सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। इस क्षेत्र में सिर्फ पढ़ाई ही नहीं बल्कि सामान्य जनजीवन भी काफी चुनौतीपूर्ण है।’
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