डिजिटल डेस्क जबलपुर । कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी करवा चौथ का व्रत 4 नवंबर को है। इस दिन सुहागिन महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु एवं सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। पं. रोहित दुबे ने बताया कि इस दिन कुंवारी कन्याएँ भी सुंदर, सुशिक्षित एवं योग्य पति के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन भगवान गणेश जी एवं चंद्रमा का पूजन-अर्चन किया जाता है, साथ ही शिव जी के पूरे परिवार का भी पूजन किया जाता है। पं. राजकुमार शर्मा शास्त्री ने बताया कि व्रतधारी महिलाएँ चंद्रोदय के बाद चंद्रमा के दर्शन छलनी से करती हैं। ऐसी मान्यता है कि छलनी में जितने छेद होते हैं उतनी ही पति की आयु में वृद्धि होती है। व्रतधारी महिलाएँ मिट्टी के करवे का पूजन करती हैं तथा पेड़े, खीर का भोग लगाती हैं। व्रत को खोलने से पहले पति से जल ग्रहण कर व्रत को खोला जाता है। 4 नवंबर को चंद्रोदय शाम 7:53 बजे होगा।
करें सोलह श्रृंगार7 पं. वासुदेव शास्त्री ने बताया कि करवा चौथ पर स्त्रियों को सोलह श्रृंगार करना चाहिए। इसके बाद पूजा मुहूर्त में माँ गौरी और गणेश की पूजा करें। छलनी से या जल में चंद्रमा को देखें और जल अर्पित करें। इसके बाद करवा चौथ व्रत की कथा सुनें। व्रत के पारण के बाद सास या किसी वयोवृद्ध महिला को श्रृंगार का सामान देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
ग्वारीघाट में नहीं होगा सामूहिक करवा चौथ पूजन
नर्मदा तट उमाघाट में हर वर्ष होने वाला करवा चौथ का सार्वजनिक पूजन इस बार कोरोना संक्रमण के चलते नहीं होगा। नर्मदा महाआरती के पंडित ओंकार दुबे ने बताया कि हर वर्ष आयोजन में बड़ी संख्या में महिलाएँ आती थीं। इस बार संक्रमण को रोकने के लिए सार्वजनिक पूजन नहीं करने का निर्णय लिया गया है। सभी से अपील की गई है कि वे घरों पर सुरक्षित रहकर पूजन करें।
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